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भारत में पंचाग निर्माण की परंपरा

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      पंचाग परिचय:-   भारतीय ज्योतिषशास्त्र का मूलाधार आकाशीय ग्रहनक्षत्रों का गणित तथा वेध है। गणित के आधार पर सूर्य चन्द्रादि की स्थितियों का सही निर्णय कर गोलीयवेध से दृग्गणितैक्यजन्य समन्वय के द्वारा ग्रहों की वास्तविक दृष्टयुपलब्ध स्थिति ही, उनकी व्यवहारिक उपयोगिता का मूल आधार है। पर्व, धर्मकार्य, यात्रा, विवाह, उत्सव जातक तथा भविष्यफल की जानकारी हेतु ग्रहगणित की शुद्धता की परख पंचांगनिर्माण के द्वारा ही सिद्ध होता है। पंचानां अंगानां समाहारः इति पंचांगम्। पंचांग में पाँच अंग प्रधान होते है तिथि, वार, नक्षत्र, योग एवं करण। इन पाँच अंगों के समाहार को पंचांग कहते है। यथा - तिथिवारं च नक्षत्रं योगः करणमेव च।         इति पंचांगमाख्यातं व्रतपर्वनिदर्शकम्।।  ये सभी व्यक्तकाल के प्रधान तत्व है। इनके ही आधार पर प्रत्येक धार्मिक, सामाजिक, व्यावहारिक एवं शास्त्रीयकार्य सम्पन्न होते हैं। 'पंचांग' ज्योतिषशास्त्र का मेरूदण्ड माना जाता है। शककाल, वर्षारम्भ, संवत्सर, पूर्णिमान्त- अमान्त मान इत्यादि कुछ बातें पंचांग की ही अंगभूत है। विदित है कि ज्योतिषग...

विवाह: मुहूर्त

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  हिंदू धर्म में विवाह के लिए शुभ समय (मुहूर्त) का निर्धारण ज्योतिषीय गणनाओं, ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति, तिथि, लग्न, और योग पर आधारित होता है। विभिन्न मुहूर्त ग्रंथों, जैसे *मुहूर्त चिंतामणि*, *धर्मसिंधु*, और *पंचांग*, के अनुसार विवाह का समय दिन या रात दोनों में शुभ हो सकता है, बशर्ते शुभ मुहूर्त और लग्न की गणना सही हो। नीचे इस विषय पर विस्तृत जानकारी दी गई है:        मुहूर्त शास्त्रों के अनुसार भाद्रादि आदि अन्य क्रूर दोषरहित विवाह - नक्षत्र के समय शुद्ध लग्न में विवाह कभी भी (रात्रि या दिन में) किया जा सकता है। इस विषय में जाति का कोई बंधन नहीं है। लेकिन मुहूर्तशास्त्रकारों ने परामर्श किया है कि विवाह रात्रि के समय किया जाए तो अपेक्षाकृत अधिक शुभ होता है क्योंकि यमघंट, यमदष्ट्रा, क्रकच आदि अनेक अशुभ योगों का प्रभाव दिन में ही होता है, रात्रि में नहीं - "दिवा मृत्युप्रदा: दोषास्त्वेषु न रात्रिषु "-(वशिष्ट:)  1. दिन में विवाह शास्त्रीय दृष्टिकोण: हिंदू शास्त्रों में सामान्यतः शुभ कार्यों को दिन में करने की सलाह दी जाती है, क्योंकि सूर्य की उपस्थिति को सकारात...

कर्क में शुक्र का गोचर: इन राशियों के लिए विशेष फलदायी।

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20 अगस्त 2025 को शुक्र ग्रह मिथुन राशि से निकलकर कर्क राशि में गोचर करेंगे। यह गोचर लगभग एक महीने तक रहेगा, जिसका विभिन्न राशियों पर अलग-अलग प्रभाव देखने को मिलेगा। वैदिक ज्योतिष में शुक्र को प्रेम, सौंदर्य, विलासिता, धन और संबंधों का कारक माना जाता है, जबकि कर्क राशि भावना, परिवार और घर से जुड़ी होती है। इसलिए, इस गोचर के दौरान लोगों के भावनात्मक जीवन, पारिवारिक संबंधों और वित्तीय मामलों पर विशेष प्रभाव पड़ सकता है। शुक्र गोचर का विभिन्न राशियों पर प्रभाव: मेष राशि: यह गोचर आपकी राशि के चौथे भाव में होगा, जो घर और परिवार से संबंधित है। इस दौरान आप घर की सजावट या मरम्मत पर खर्च कर सकते हैं। पारिवारिक रिश्तों में मधुरता आएगी और आप परिवार के साथ अधिक समय बिताएंगे। वृषभ राशि: शुक्र आपकी राशि के तीसरे भाव में गोचर करेंगे, जिससे आपके बातचीत करने के तरीके में सुधार होगा। यह आपके लिए नए वित्तीय अवसर ला सकता है। आप भाई-बहनों या दोस्तों के साथ छोटी यात्राओं की योजना बना सकते हैं, जिससे रिश्ते मजबूत होंगे। मिथुन राशि: शुक्र आपकी राशि के दूसरे भाव में गोचर करेंगे, जो धन और वाणी का भाव...

सिंह राशि में सूर्य का गोचर: इन राशियों के लिए विशेष फलदायक।

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सूर्य का अपनी ही राशि सिंह में गोचर एक महत्वपूर्ण ज्योतिषीय घटना है। इसे ज्योतिष में बहुत शुभ माना जाता है, क्योंकि सूर्य अपनी स्वराशि में होने के कारण अधिक बलवान और प्रभावशाली हो जाते हैं। इस गोचर का प्रभाव सभी राशियों पर पड़ता है, लेकिन कुछ राशियों के लिए यह विशेष रूप से फलदायी होता है। आइए जानते हैं किन राशियों के लिए यह गोचर विशेष रूप से लाभकारी सिद्ध होगा:  * मिथुन राशि: मिथुन राशि के जातकों के लिए सूर्य का यह गोचर बेहद शुभ माना जाता है। इस दौरान आपको व्यापार में उन्नति मिल सकती है, नौकरी से जुड़ी परेशानियां दूर होंगी और आय के नए स्रोत बन सकते हैं। छात्रों को भी परीक्षा में सफलता मिलने की संभावना है।  * सिंह राशि: सूर्य आपकी ही राशि में गोचर कर रहे हैं, इसलिए यह समय आपके लिए बहुत अच्छा रहेगा। आपकी आर्थिक स्थिति मजबूत होगी और नौकरी में बदलाव के अवसर मिल सकते हैं। इस दौरान आपके रुके हुए काम भी पूरे होने की संभावना है।  * धनु राशि: धनु राशि के जातकों के लिए सूर्य का सिंह राशि में गोचर बेहद शुभ साबित होगा। आपको विदेश यात्रा का अवसर मिल सकता है, जो आपके करियर ...

ग्रह शांति में नव ग्रह समीदा का उपयोग

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  नव ग्रह समीदा हवन में उपयोग की जाने वाली नौ विभिन्न प्रकार की लकड़ियों या पौधों की टहनियों का एक समूह है, जो नौ ग्रहों में से प्रत्येक का प्रतिनिधित्व करती हैं।" नमस्ते! "नव ग्रह समीदा" हवन (अग्नि अनुष्ठान) में उपयोग की जाने वाली नौ अलग-अलग प्रकार की लकड़ियों या पौधों की टहनियों का एक समूह है, जो नौ ग्रहों में से प्रत्येक का प्रतिनिधित्व करती हैं। इन समिधाओं का उपयोग नवग्रहों को प्रसन्न करने और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए किया जाता है। प्रत्येक ग्रह के लिए विशिष्ट समीदा निर्धारित है:  * सूर्य: अर्क (आक)  * चंद्र: पलाश (ढाक)  * मंगल: खदिर (कत्था)  * बुध: अपामार्ग (चिरचिटा)  * बृहस्पति: पीपल  * शुक्र: उदुम्बर (गूलर)  * शनि: शमी (खेजड़ी)  * राहु: दूर्वा (दूब घास)  * केतु: कुशा (दर्भ घास) हवन करते समय, प्रत्येक ग्रह के मंत्र का जाप करते हुए उसकी संबंधित समीदा को अग्नि में अर्पित किया जाता है। नव ग्रह समीदा का महत्व:  * माना जाता है कि प्रत्येक समीदा में उस विशेष ग्रह की ऊर्जा होती है।  * हवन में इन समिधाओं का उपयोग करके, व्...

बिखोति संक्रांति

बिखोति संक्रांति मुख्य रूप से उत्तराखंड में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्योहार है। इसे विषुवत संक्रांति या मेष संक्रांति के रूप में भी जाना जाता है, और यह बैसाख महीने के पहले दिन पड़ता है, जो आमतौर पर अप्रैल के मध्य में होता है। 14 अप्रैल 2025 को भी बिखोति संक्रांति मनाई जाएगी। बिखोति संक्रांति का अर्थ और महत्व:  * यह त्योहार हिंदू सौर नववर्ष की शुरुआत का प्रतीक है।  * यह वसंत ऋतु के आगमन और नई फसल के मौसम की शुरुआत का भी प्रतीक है।  * 'बिखोति' शब्द वन्यजीवों से जुड़ा हुआ माना जाता है, और ऐसा माना जाता है कि इस दिन बारिश होने से पौधे बीमारियों से मुक्त रहते हैं और अगली फसल अच्छी होती है।  * यह दिन गंगा नदी और अन्य पवित्र नदियों में स्नान करने और दान-पुण्य करने के लिए शुभ माना जाता है।  * यह त्योहार उत्तराखंड की लोक संस्कृति और परंपराओं को दर्शाता है। बिखोति संक्रांति की परंपराएं और अनुष्ठान:  * पवित्र स्नान: लोग नदियों और पवित्र कुंडों में स्नान करते हैं।  * पूजा और दान: मंदिरों में पूजा-अर्चना की जाती है और गरीबों को दान दिया जाता है।  * ओढ़ा ...

हिंदू कैलेंडर का वैज्ञानिक आधार और वर्तमान कैलेंडर

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 #हिन्दू_कैलेंडर की #वैज्ञानिकता का आधार  आज वर्तमान में  संपूर्ण विश्व में ग्रेगोरियन कैलेंडर का उपयोग किया जाता है जो सूर्य के उदय अस्त पर आधारित है।  *ग्रेगोरियन कैलेंडर को 1582 में पोप ग्रेगरी XIII द्वारा शुरू किया गया था।    * यह जूलियन कैलेंडर का एक संशोधन था, जो पहले उपयोग में था, लेकिन बहुत सटीक नहीं था। *हिंदू कैलेंडर की वैज्ञानिकता खगोल विज्ञान और गणित पर आधारित है। यहां कुछ प्रमुख पहलू दिए गए हैं:  * चंद्र और सौर गणना:    * हिंदू कैलेंडर चंद्रमा और सूर्य दोनों की गति पर आधारित है। यह इसे अन्य कैलेंडरों से अधिक सटीक बनाता है, जो केवल चंद्रमा या सूर्य पर आधारित होते हैं।    * चंद्रमा की गति के आधार पर महीनों की गणना होती है, जबकि सूर्य के आधार पर साल की गणना होती है।  * नक्षत्रों का उपयोग:    * हिंदू कैलेंडर में नक्षत्रों का भी उपयोग किया जाता है, जो तारों के समूह हैं।    * नक्षत्रों की स्थिति का उपयोग शुभ और अशुभ समय निर्धारित करने के लिए किया जाता है।  * गणितीय सटीकता:    * हिंदू कै...

Karmesh bhav fal: कर्म भाव फल

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 हमारे जीवन में कर्म का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। बिना कर्म के कोई भी कार्य की प्राप्ति असंभव सी है। ईश्वर का यह शाश्वत नियम है कि जैसे कर्म करेगें वैसे फल की प्राप्ति होगी। यह वाक्य वेद,पुराण आदि ग्रन्थों वर्णित है। इस जगत में सभी चराचर जीव-जन्तु,प्राणि,मनुष्य कर्म के अधीन है। ज्योतिषशास्त्र में कर्मफल का विवेचन किया गया है। पूर्व जन्मकृत के आधार पर मनुष्य इस जन्म उचित-अनुचित कर्म करता है। जन्माङ्ङ्ग चक्र में दशवें भाव को कर्म भाव माना गया है तथा इस भाव के स्वामी को कर्मेश कह गया है। दशम भाव के स्वामी की विभिान्न भावों के साथ योग, दृष्टि व संबंध से व्यक्ति के कर्म क्षेत्र पर प्रभाव पड़ता है। इस लेख में आप विस्तार से जान पाएँगे कि कर्म व कर्मेश की भूमिका।  *कर्मेश अर्थात दशम भाव का स्वामी यदि लग्न में स्थित हो तो ऐसा व्यक्ति कविता करने वाला, बाल्यकाल में रोगी पीछे सुखी और प्रतिदिन धन में वृद्धि करने वाला होता है। * यदि कर्मेश 2,3,7 भावों में हो तो व्यक्ति मनस्वी, गुणी, बुद्धिमान और सत्य बोलने वाला होता है।  *यदि कर्मेश चौथे व दशम भाव में हो तो व्यक्ति, ज्ञानी, सुखी, वि...

वृश्चिक लग्न और वृश्चिक वर्षफल: एक गहन विश्लेषण

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  वृश्चिक लग्न और वृश्चिक वर्षफल: एक गहन विश्लेषण           जब जन्म लग्न और वर्षफल दोनों ही वृश्चिक राशि के हों, तो जातक की कुंडली में एक अद्वितीय संयोजन बनता है। यह संयोजन जातक के व्यक्तित्व और जीवन में कई महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है। वृश्चिक राशि अपने आप में एक तीव्र, भावुक और रहस्यमय राशि है। जब यह लग्न और वर्षफल दोनों में हो, तो जातक के भीतर इन गुणों की तीव्रता और भी बढ़ जाती है। ऐसे जातकों के सामान्य लक्षण:  * गहन भावनाएं: वे अपनी भावनाओं को बहुत गहराई से अनुभव करते हैं। प्रेम, घृणा, ईर्ष्या जैसी भावनाएं उनके जीवन में एक प्रमुख भूमिका निभाती हैं।  * रहस्यमय स्वभाव: वे अक्सर अपनी भावनाओं को दूसरों से छिपाते हैं और एक रहस्यमयी आभा रखते हैं।  * मजबूत इच्छाशक्ति: वे अपनी मनचाही चीजें पाने के लिए बहुत मेहनत करते हैं और कभी हार नहीं मानते।  * अंतर्दृष्टि: उनके पास दूसरों को गहराई से समझने की अद्भुत क्षमता होती है।  * चुंबकीय व्यक्तित्व: वे अपने चारों ओर लोगों को आकर्षित करते हैं। वर्षफल में वृश्चिक लग्न होने का प्रभाव:  * परिवर्त...

जीवन के चार पुरुषार्थ

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  जीवन के चार उद्देश्य वैदिक विज्ञान मानव जीवन के चार उद्देश्यों या लक्ष्यों को पहचानता है: काम, अर्थ, धर्म और मोक्ष।  1.#काम का अर्थ है इच्छा और यह जीवन में भावनात्मक और संवेदी पूर्ति की हमारी आवश्यकता को दर्शाता है। इस प्रकार, हम इसे आनंद कह सकते हैं। जीवन में हम जो कुछ भी करते हैं, वह खुशी का स्रोत होना चाहिए और किसी भी प्राणी को पीड़ा नहीं पहुँचाना चाहिए। 2.#अर्थ- का अर्थ है लक्ष्यों की प्राप्ति, लेकिन यह विशेष रूप से मूल्यवान वस्तुओं के अधिग्रहण से संबंधित है और इसलिए इसे धन के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। हममें से प्रत्येक के पास जीवन में अपनी क्षमता को पूरा करने के लिए धन की आवश्यक वस्तुएँ होनी चाहिए। 3.#धर्म- का अर्थ है सिद्धांत या कानून और यह सम्मान या मान्यता की हमारी आवश्यकता को दर्शाता है। हम इसे व्यवसाय कह सकते हैं, क्योंकि हमारी संस्कृति इस आवश्यकता की व्याख्या इसी तरह करती है। हममें से प्रत्येक को इस बात के लिए स्वीकार किए जाने की आवश्यकता है कि हम क्या कर सकते हैं ताकि हम अपने वास्तविक स्वरूप से समझौता किए बिना समाज में योगदान दे सकें। 4.#मोक्ष का अर्थ है ...

हिन्दू धर्म में नारायणबली का का करण एंव महत्व

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              नारायणबलि      सनातन (हिन्दू) धर्म विश्व का सबसे प्राचीन धर्म है. यह धर्म प्रकृतिमूलक के साथ - साथ ईश्वरवादी भी है.  इस धर्म में ईश्वर, आत्मा तथा जीव में समन्वय स्थापित किया गया है. इसी लिए शास्त्रों में कहा गया है कि- "देवाधीनं जगत सर्वम, मंत्राधिनम च देवता"।।    हमारे धर्म शास्त्रों में मृत्यु का प्रकार,  मृत्यु का कारण तथा उसकी प्रकृति पर विस्तृत रूप से चर्चा की गई है, और मृत्यु की गति के अनुसार व्यक्ति को इहलोक एवं परलोक की प्राप्ति होती है। जिन व्यक्तियों की आकस्मिक मृत्यु होती है तथा मृत्यु का कोई कारण पता नहीं चलता है और उनकी मृत आत्माएं इस लोक में मुक्ति के लिए भटकती रहती है. मृतात्मा की शांति के लिए नारायणबलि का प्रावधान बताया गया है, जो इस प्रकार है -    ग्यारहवें दिन से समन्त्रक श्राद्ध आदि करने की विधि है। प्राणी के दुर्मरण की निवृत्ति के लिये नारायणबलि करने की आवश्यकता होती है। दुर्मरण की आशंका न रहने पर नारायणबलि करना अनिवार्य नहीं है। शास्त्रों में दुर्भरण के निम्नलिखित कारण परिभ...

Grahchar fal ग्रहचार : भौमाचार फल

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 ग्रहचार : भौमाचार फल (ज्योतिषाचार्य पं. हेमवती नंदन कुकरेती) ग्रहचार : सामान्य परिचय ज्योतिष शास्त्र में ग्रहचार का अर्थ है ग्रहों का चलन। 'चर' शब्द चलन अर्थ में प्रयुक्त होता है। सूर्यादि ग्रहों का चार एवं चारफल का वर्णन समस्त संहिताचार्यों ने अपने-अपने ग्रन्थों में प्रतिपादित किया है। आइए मंगल के चार से आरम्भ करते है - अपने उदय नक्षत्र से सातवें, आठवें तथा नवें नक्षत्र में यदि मंगल वक्री हो तो उसे उष्णसंज्ञक कहते हैं। इसमें अग्नि भय होता है तथा प्रजा पीडित होती है। यदि मंगल दसवें, ग्यारहवें या बारहवें नक्षत्र में वक्री हो तो अल्प सुख एवं वर्षा होती है। कुजे त्रयोदशे ऋक्षे वक्रिते वा चतुर्दशे। व्यालाख्यवक्रं तत्तस्मिन् सस्यवृद्धिरहेर्भयम्।। यदि उदय नक्षत्र से तेरहवें या चौदहवें नक्षत्र में मंगल वक्री हो तो इसे व्याल नामक वक्र कहते हैं। इसमें धान्य की वृद्धि होती है तथा सर्पभय होता है। पंचदशे षोडशक्षै तद्वक्रं रूधिराननं। सुभिक्षकृत्भयं रोगान्करोति यदि भूमिजः ।। यदि १५ वें या १६ वें नक्षत्र पर मंगल ग्रह वक्री हो तो इसे रूधिरानन वक्र कहते हैं। इसमें सुभिक्ष होता है तथा भय एवं रो...

Kahala yog : काहल योग

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काहल योग  लग्नेश बलवान हो, सुखेश और गुरु परस्पर  केंद्र में हो, सुखेश और कर्मेश एक साथ होकर अपने उच्च,  स्वराशि में हो तो दोनों तरह के काहल नामक योग बनते हैं। इस योग में जन्म लेने वाला जातक तेजस्वी, साहसी, धूर्त, चतुर, बाली और कुछ गांव का अधिपति होता है। #https://www.youtube.com/@Pt.HNKukretiAstrology

काल की अवधारणा एवं भेद

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काल: -  "कालः सृजति भूतानि कालः संहरते प्रजाः" इत्यादि शास्त्र वचनों के आधार काल अनादि एवं अनंत रूप में होता है। मूल रूप से किसी भी एक नियम या परिभाषा में खंडन कर देना एक कठिन प्रयास है, तथापि शास्त्रकारों ने अपने - अपने सिद्धांतों के उपदेशों को सूक्ष्म रूप में प्रतिपादित किया है। परंतु कालविधान शास्त्र के कारण ज्योतिषशास्त्र में काल होने की अवधारणा सुव्यवस्थित एवं सूक्ष्मतम रूप में प्रतिपादित है। ज्योतिष शाशास्त्रानुसार काल को  दो भागों में विभक्त कर इसकी परिभाषा निश्चित रूप से बताई गई है। जिसमें काल के प्रथम भेद को भगवान का रूप स्वीकार कर सृष्टिकारक  एवं  'अन्तकृत' अर्थात लोक का संहारक तथा दूसरे को कलात्मक अर्थात गणना में प्रयुक्त काल कहा गया है।  1. अन्तकृत (उत्पादक एंव संहारक) 2. कलनात्मक - (क) सूक्ष्म (अमूर्त)                        (ख) स्थूल (मूर्त) सूक्ष्म काल -  सूक्ष्म कल की इकाइयों को यंत्रादि के द्वारा जानकर गणित में प्रयोग किया जाता है अतः सरलता पूर्वक अभ्यास नहीं होने के कारण सामान्य व...

Rashi,bhav evam grahno se rog vichar

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 https://youtu.be/oODQoliCd18?si=47uZOqtz3S966o4K

अष्टाध्यायी-व्याकरण

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  व्याकरण - पाणिनी की प्रसिद्ध अष्टाध्यायी जिसमें सभी के लिए लौकिक संस्कृत भाषा को स्थिर कर दिया है। अष्टाध्यायी प्राचीन व्याकरणों के प्रयासों के परिणाम है। पाणिनी के महान व्याकरण ग्रंथ के सामने अनेक प्राचीन ग्रंथ अप्रचलित हो गये । इसमें स्वर वैदिकी भी है।

सूर्य जब इस अवस्था में होता है तो देता सबसे अधिक शुभ फल

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Shubh muhurt vadhu Pravesh Ghar Mein. वधू प्रवेश शुभ मूहुर्त.

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प्रिय पाठकों,                नमस्कार! इस लेख में आप जान पाएंगे कि विवाह के बाद दुल्हन का पुन: ससुराल में गृहप्रवेश के लिए दिन, तिथी तथा शुभ वार कब होता ? तथा उसका महत्व क्या है?       जैसा कि आप सभी जानते हैं कि हिंदू धर्म में जन्म से लेकर और मृत्यु पर्यंत मुख्ता 16 प्रकार की संस्कार होते हैं तथा अप संस्कार भी कुछ होते हैं जो तिथि, वार, नक्षत्र के आधार पर मुख्य संस्कार को विधिवत्त संपन्न करने के लिए किये जाते है।           इसलिए आज मैं विवाह से संबंधित एक महत्वपूर्ण संस्कार के बारे में चर्चा करूंगा की जब विवाह विधिवत्त रूप से संपन्न हो जाता है तथा दुल्हन वापस एक दिन के पश्चात अपने पिता के घर में आ जाती है,  और फिर तिथि, वार, नक्षत्र के आधार पर निर्णय लिया जाता है कि कब किस तिथि को, किस वार को या कितने दिन पश्चात दुल्हन पुनः अपने ससुराल में जाएगी तो यह एक उप संस्कार होता है और इसको आप वधू प्रवेश या पिता के घर से ससुराल में जाने की दिन को द्विरागमन या रस्म रिवाज के आधार पर प्रत्येक क्षेत्र में अलग-अल...

ग्रहों के शत्रु मित्रादि Planets Friend and enemy

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प्रिय पाठकों को नमस्कार! मैं आपको ग्रहों के मित्र, शत्रु आदि का ज्ञान इस लेख के माध्यम से कराऊंगा। जब हम ग्रह के प्रभाव को बारीकी से समझते हैं तो मालूम होता है कि दृष्टि के माध्यम से या अपने संचरण के माध्यम से हो, वस्तुतः ग्रह हमें तीन प्रकार से प्रभावित करते हैं।  1 मित्रवत,2 शत्रुवत,तथा 3 तटस्थ।  तात्पर्य यह है कि ग्रह या तो मित्रवत हमारा सहयोग करेगा या शत्रुवत पीड़ा देगा। तटस्थ ग्रह जिन ग्रह के प्रभाव में होगा उन ग्रहों के गुणानुसार अपना प्रभाव प्रगट करेगा। अनुकूल ग्रह, प्रतिकूल ग्रह, शुभ फल देने वाला, अशुभ फल देने वाला आदि सभी बातें इन्हीं उपयुक्त कर्म से निर्धारित होती है अतः इस भाग में हम कुंडली में मित्र आदि सम्यक ज्ञान प्राप्त करेंगे। ग्रहों के शत्रु मित्रादि हमारे मनीषियों ने ग्रहों के नैसर्गिक  मित्र,  शत्रु व सम ग्रहों का निर्णय किया है। नैसर्गिक का भावार्थ यह है कि प्राकृतिक रूप से ग्रह किसका मित्र है,  किस का शत्रु है। स्वे: समो ज्ञःसितसूर्यपुत्रावरी परे ते सुहृदो भवेयुः।  चन्द्रस्य नारी रविचन्द्र पुत्रौ मित्रे समः शेषनभश्चराः स्युः।।  सभी...

ब्राह्मण क्यों देवता है ?

  देवाधीनं जगत सर्वं मंत्राधीना च देवता ते मंत्रा ब्राह्मणाधीना तस्मात् ब्राह्मण देवता । यह संसार ईश्वर के अधीन है और ईश्वर मंत्रों के अधीन है, तथा मंत्र ब्राह्मणों के अधीन है, इसीलिए शास्त्रों में, वेदों में कहा गया है कि ब्राह्मण ही देवता है, जब तक ब्राह्मण मंत्र का उच्चारण नहीं करेगा तो तब तक ईश्वर प्रश्न नहीं होगा क्योंकि मंत्रों में ईश्वर प्राप्त करने की असाधारण शक्ति व्याप्त है, इसीलिए ब्राह्मणों को देवता माना गया है।