Karmesh bhav fal: कर्म भाव फल

 हमारे जीवन में कर्म का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। बिना कर्म के कोई भी कार्य की प्राप्ति असंभव सी है। ईश्वर का यह शाश्वत नियम है कि जैसे कर्म करेगें वैसे फल की प्राप्ति होगी। यह वाक्य वेद,पुराण आदि ग्रन्थों वर्णित है। इस जगत में सभी चराचर जीव-जन्तु,प्राणि,मनुष्य कर्म के अधीन है।

ज्योतिषशास्त्र में कर्मफल का विवेचन किया गया है। पूर्व जन्मकृत के आधार पर मनुष्य इस जन्म उचित-अनुचित कर्म करता है। जन्माङ्ङ्ग चक्र में दशवें भाव को कर्म भाव माना गया है तथा इस भाव के स्वामी को कर्मेश कह गया है। दशम भाव के स्वामी की विभिान्न भावों के साथ योग, दृष्टि व संबंध से व्यक्ति के कर्म क्षेत्र पर प्रभाव पड़ता है। इस लेख में आप विस्तार से जान पाएँगे कि कर्म व कर्मेश की भूमिका। 

*कर्मेश अर्थात दशम भाव का स्वामी यदि लग्न में स्थित हो तो ऐसा व्यक्ति कविता करने वाला, बाल्यकाल में रोगी पीछे सुखी और प्रतिदिन धन में वृद्धि करने वाला होता है।

* यदि कर्मेश 2,3,7 भावों में हो तो व्यक्ति मनस्वी, गुणी, बुद्धिमान और सत्य बोलने वाला होता है। 

*यदि कर्मेश चौथे व दशम भाव में हो तो व्यक्ति, ज्ञानी, सुखी, विक्रमी, गुरु- देवता की पूजन में रत, धर्मात्मा और सत्यवादी होता है ।

*कर्मेश यदि पांचवें या एकादश भाव में हो तो व्यक्ति धनी, पुत्रवान, सर्वदा प्रश्नचित, सत्यवादी और सुखी होता है।

* यदि कर्मेश छठे या बारहवें भाव में हो तो व्यक्ति शत्रुओं से पीड़ित, चतुर और कभी सुखी न रहने वाला होता है।

* यदि कर्मेश आठवें भाव में हो तो व्यक्ति क्रूर, चोर अथवा धूर्त, झूठ बोलने वाला, माता को दु:ख देने वाला होता है।

 *कर्मेश यदि नव भाव मे हो तो व्यक्ति  कुलपालक श्रेष्ठ बंधु - मित्र से युक्त और मातृभक्त होता है। 

लेख पढ़ने के लिए आप का धन्यवाद!

ज्योतिषाचार्य: पं. हेमवती नन्दन कुकरेती

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