भारतीय ज्योतिष एक प्राचीन विज्ञान है। इसे वेदों का नेत्र भी कह गया है। इस आधुनिक युग में भी यह अपनी कसौटी पर खरा उतरता है। इस की सटीकता को कोई भी विज्ञान चुनौती नहीं दे सकता है।
वृश्चिक लग्न और वृश्चिक वर्षफल: एक गहन विश्लेषण जब जन्म लग्न और वर्षफल दोनों ही वृश्चिक राशि के हों, तो जातक की कुंडली में एक अद्वितीय संयोजन बनता है। यह संयोजन जातक के व्यक्तित्व और जीवन में कई महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है। वृश्चिक राशि अपने आप में एक तीव्र, भावुक और रहस्यमय राशि है। जब यह लग्न और वर्षफल दोनों में हो, तो जातक के भीतर इन गुणों की तीव्रता और भी बढ़ जाती है। ऐसे जातकों के सामान्य लक्षण: * गहन भावनाएं: वे अपनी भावनाओं को बहुत गहराई से अनुभव करते हैं। प्रेम, घृणा, ईर्ष्या जैसी भावनाएं उनके जीवन में एक प्रमुख भूमिका निभाती हैं। * रहस्यमय स्वभाव: वे अक्सर अपनी भावनाओं को दूसरों से छिपाते हैं और एक रहस्यमयी आभा रखते हैं। * मजबूत इच्छाशक्ति: वे अपनी मनचाही चीजें पाने के लिए बहुत मेहनत करते हैं और कभी हार नहीं मानते। * अंतर्दृष्टि: उनके पास दूसरों को गहराई से समझने की अद्भुत क्षमता होती है। * चुंबकीय व्यक्तित्व: वे अपने चारों ओर लोगों को आकर्षित करते हैं। वर्षफल में वृश्चिक लग्न होने का प्रभाव: * परिवर्त...
पंचाग परिचय:- भारतीय ज्योतिषशास्त्र का मूलाधार आकाशीय ग्रहनक्षत्रों का गणित तथा वेध है। गणित के आधार पर सूर्य चन्द्रादि की स्थितियों का सही निर्णय कर गोलीयवेध से दृग्गणितैक्यजन्य समन्वय के द्वारा ग्रहों की वास्तविक दृष्टयुपलब्ध स्थिति ही, उनकी व्यवहारिक उपयोगिता का मूल आधार है। पर्व, धर्मकार्य, यात्रा, विवाह, उत्सव जातक तथा भविष्यफल की जानकारी हेतु ग्रहगणित की शुद्धता की परख पंचांगनिर्माण के द्वारा ही सिद्ध होता है। पंचानां अंगानां समाहारः इति पंचांगम्। पंचांग में पाँच अंग प्रधान होते है तिथि, वार, नक्षत्र, योग एवं करण। इन पाँच अंगों के समाहार को पंचांग कहते है। यथा - तिथिवारं च नक्षत्रं योगः करणमेव च। इति पंचांगमाख्यातं व्रतपर्वनिदर्शकम्।। ये सभी व्यक्तकाल के प्रधान तत्व है। इनके ही आधार पर प्रत्येक धार्मिक, सामाजिक, व्यावहारिक एवं शास्त्रीयकार्य सम्पन्न होते हैं। 'पंचांग' ज्योतिषशास्त्र का मेरूदण्ड माना जाता है। शककाल, वर्षारम्भ, संवत्सर, पूर्णिमान्त- अमान्त मान इत्यादि कुछ बातें पंचांग की ही अंगभूत है। विदित है कि ज्योतिषग...
हिंदू धर्म में विवाह के लिए शुभ समय (मुहूर्त) का निर्धारण ज्योतिषीय गणनाओं, ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति, तिथि, लग्न, और योग पर आधारित होता है। विभिन्न मुहूर्त ग्रंथों, जैसे *मुहूर्त चिंतामणि*, *धर्मसिंधु*, और *पंचांग*, के अनुसार विवाह का समय दिन या रात दोनों में शुभ हो सकता है, बशर्ते शुभ मुहूर्त और लग्न की गणना सही हो। नीचे इस विषय पर विस्तृत जानकारी दी गई है: मुहूर्त शास्त्रों के अनुसार भाद्रादि आदि अन्य क्रूर दोषरहित विवाह - नक्षत्र के समय शुद्ध लग्न में विवाह कभी भी (रात्रि या दिन में) किया जा सकता है। इस विषय में जाति का कोई बंधन नहीं है। लेकिन मुहूर्तशास्त्रकारों ने परामर्श किया है कि विवाह रात्रि के समय किया जाए तो अपेक्षाकृत अधिक शुभ होता है क्योंकि यमघंट, यमदष्ट्रा, क्रकच आदि अनेक अशुभ योगों का प्रभाव दिन में ही होता है, रात्रि में नहीं - "दिवा मृत्युप्रदा: दोषास्त्वेषु न रात्रिषु "-(वशिष्ट:) 1. दिन में विवाह शास्त्रीय दृष्टिकोण: हिंदू शास्त्रों में सामान्यतः शुभ कार्यों को दिन में करने की सलाह दी जाती है, क्योंकि सूर्य की उपस्थिति को सकारात...
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