बिखोति संक्रांति
बिखोति संक्रांति का अर्थ और महत्व:
* यह त्योहार हिंदू सौर नववर्ष की शुरुआत का प्रतीक है।
* यह वसंत ऋतु के आगमन और नई फसल के मौसम की शुरुआत का भी प्रतीक है।
* 'बिखोति' शब्द वन्यजीवों से जुड़ा हुआ माना जाता है, और ऐसा माना जाता है कि इस दिन बारिश होने से पौधे बीमारियों से मुक्त रहते हैं और अगली फसल अच्छी होती है।
* यह दिन गंगा नदी और अन्य पवित्र नदियों में स्नान करने और दान-पुण्य करने के लिए शुभ माना जाता है।
* यह त्योहार उत्तराखंड की लोक संस्कृति और परंपराओं को दर्शाता है।
बिखोति संक्रांति की परंपराएं और अनुष्ठान:
* पवित्र स्नान: लोग नदियों और पवित्र कुंडों में स्नान करते हैं।
* पूजा और दान: मंदिरों में पूजा-अर्चना की जाती है और गरीबों को दान दिया जाता है।
* ओढ़ा भेंटना: स्याल्दे बिखोति मेले में 'ओढ़ा भेंटने' की एक विशेष रस्म होती है, जिसमें पत्थर पर डंडे से प्रहार किया जाता है। इसके पीछे एक प्राचीन किंवदंती है।
* स्याल्दे बिखोति मेला: अल्मोड़ा जिले के द्वाराहाट और विभांडेश्वर मंदिर में इस अवसर पर भव्य मेले का आयोजन होता है, जिसमें लोक नृत्य, संगीत और विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं।
* झोड़ा गायन: इस मेले में लोक वाद्य यंत्रों के साथ पारंपरिक झोड़ा गीत गाए जाते हैं और नृत्य किया जाता है।
* जलेबी का आदान-प्रदान: मेले में जलेबी खाई और बांटी जाती है।
* स्थानीय व्यंजन: इस दिन विशेष पारंपरिक व्यंजन बनाए जाते हैं।
संक्षेप में, बिखोति संक्रांति उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में नए साल और वसंत के आगमन का स्वागत करने वाला एक महत्वपूर्ण और रंगारंग त्योहार है, जो धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं से भरपूर है।
(ज्योतिषाचार्य:-पं. हेमवती नन्दन कुकरेती)🙏🙏🙏
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें