संदेश

काल की अवधारणा एवं भेद

चित्र
काल: -  "कालः सृजति भूतानि कालः संहरते प्रजाः" इत्यादि शास्त्र वचनों के आधार काल अनादि एवं अनंत रूप में होता है। मूल रूप से किसी भी एक नियम या परिभाषा में खंडन कर देना एक कठिन प्रयास है, तथापि शास्त्रकारों ने अपने - अपने सिद्धांतों के उपदेशों को सूक्ष्म रूप में प्रतिपादित किया है। परंतु कालविधान शास्त्र के कारण ज्योतिषशास्त्र में काल होने की अवधारणा सुव्यवस्थित एवं सूक्ष्मतम रूप में प्रतिपादित है। ज्योतिष शाशास्त्रानुसार काल को  दो भागों में विभक्त कर इसकी परिभाषा निश्चित रूप से बताई गई है। जिसमें काल के प्रथम भेद को भगवान का रूप स्वीकार कर सृष्टिकारक  एवं  'अन्तकृत' अर्थात लोक का संहारक तथा दूसरे को कलात्मक अर्थात गणना में प्रयुक्त काल कहा गया है।  1. अन्तकृत (उत्पादक एंव संहारक) 2. कलनात्मक - (क) सूक्ष्म (अमूर्त)                        (ख) स्थूल (मूर्त) सूक्ष्म काल -  सूक्ष्म कल की इकाइयों को यंत्रादि के द्वारा जानकर गणित में प्रयोग किया जाता है अतः सरलता पूर्वक अभ्यास नहीं होने के कारण सामान्य व...

Rashi,bhav evam grahno se rog vichar

चित्र
 https://youtu.be/oODQoliCd18?si=47uZOqtz3S966o4K

अष्टाध्यायी-व्याकरण

चित्र
  व्याकरण - पाणिनी की प्रसिद्ध अष्टाध्यायी जिसमें सभी के लिए लौकिक संस्कृत भाषा को स्थिर कर दिया है। अष्टाध्यायी प्राचीन व्याकरणों के प्रयासों के परिणाम है। पाणिनी के महान व्याकरण ग्रंथ के सामने अनेक प्राचीन ग्रंथ अप्रचलित हो गये । इसमें स्वर वैदिकी भी है।

सूर्य जब इस अवस्था में होता है तो देता सबसे अधिक शुभ फल

चित्र
 

Shubh muhurt vadhu Pravesh Ghar Mein. वधू प्रवेश शुभ मूहुर्त.

चित्र
प्रिय पाठकों,                नमस्कार! इस लेख में आप जान पाएंगे कि विवाह के बाद दुल्हन का पुन: ससुराल में गृहप्रवेश के लिए दिन, तिथी तथा शुभ वार कब होता ? तथा उसका महत्व क्या है?       जैसा कि आप सभी जानते हैं कि हिंदू धर्म में जन्म से लेकर और मृत्यु पर्यंत मुख्ता 16 प्रकार की संस्कार होते हैं तथा अप संस्कार भी कुछ होते हैं जो तिथि, वार, नक्षत्र के आधार पर मुख्य संस्कार को विधिवत्त संपन्न करने के लिए किये जाते है।           इसलिए आज मैं विवाह से संबंधित एक महत्वपूर्ण संस्कार के बारे में चर्चा करूंगा की जब विवाह विधिवत्त रूप से संपन्न हो जाता है तथा दुल्हन वापस एक दिन के पश्चात अपने पिता के घर में आ जाती है,  और फिर तिथि, वार, नक्षत्र के आधार पर निर्णय लिया जाता है कि कब किस तिथि को, किस वार को या कितने दिन पश्चात दुल्हन पुनः अपने ससुराल में जाएगी तो यह एक उप संस्कार होता है और इसको आप वधू प्रवेश या पिता के घर से ससुराल में जाने की दिन को द्विरागमन या रस्म रिवाज के आधार पर प्रत्येक क्षेत्र में अलग-अल...

ग्रहों के शत्रु मित्रादि Planets Friend and enemy

चित्र
प्रिय पाठकों को नमस्कार! मैं आपको ग्रहों के मित्र, शत्रु आदि का ज्ञान इस लेख के माध्यम से कराऊंगा। जब हम ग्रह के प्रभाव को बारीकी से समझते हैं तो मालूम होता है कि दृष्टि के माध्यम से या अपने संचरण के माध्यम से हो, वस्तुतः ग्रह हमें तीन प्रकार से प्रभावित करते हैं।  1 मित्रवत,2 शत्रुवत,तथा 3 तटस्थ।  तात्पर्य यह है कि ग्रह या तो मित्रवत हमारा सहयोग करेगा या शत्रुवत पीड़ा देगा। तटस्थ ग्रह जिन ग्रह के प्रभाव में होगा उन ग्रहों के गुणानुसार अपना प्रभाव प्रगट करेगा। अनुकूल ग्रह, प्रतिकूल ग्रह, शुभ फल देने वाला, अशुभ फल देने वाला आदि सभी बातें इन्हीं उपयुक्त कर्म से निर्धारित होती है अतः इस भाग में हम कुंडली में मित्र आदि सम्यक ज्ञान प्राप्त करेंगे। ग्रहों के शत्रु मित्रादि हमारे मनीषियों ने ग्रहों के नैसर्गिक  मित्र,  शत्रु व सम ग्रहों का निर्णय किया है। नैसर्गिक का भावार्थ यह है कि प्राकृतिक रूप से ग्रह किसका मित्र है,  किस का शत्रु है। स्वे: समो ज्ञःसितसूर्यपुत्रावरी परे ते सुहृदो भवेयुः।  चन्द्रस्य नारी रविचन्द्र पुत्रौ मित्रे समः शेषनभश्चराः स्युः।।  सभी...

ब्राह्मण क्यों देवता है ?

  देवाधीनं जगत सर्वं मंत्राधीना च देवता ते मंत्रा ब्राह्मणाधीना तस्मात् ब्राह्मण देवता । यह संसार ईश्वर के अधीन है और ईश्वर मंत्रों के अधीन है, तथा मंत्र ब्राह्मणों के अधीन है, इसीलिए शास्त्रों में, वेदों में कहा गया है कि ब्राह्मण ही देवता है, जब तक ब्राह्मण मंत्र का उच्चारण नहीं करेगा तो तब तक ईश्वर प्रश्न नहीं होगा क्योंकि मंत्रों में ईश्वर प्राप्त करने की असाधारण शक्ति व्याप्त है, इसीलिए ब्राह्मणों को देवता माना गया है।