भारतीय ज्योतिष एक प्राचीन विज्ञान है। इसे वेदों का नेत्र भी कह गया है। इस आधुनिक युग में भी यह अपनी कसौटी पर खरा उतरता है। इस की सटीकता को कोई भी विज्ञान चुनौती नहीं दे सकता है।
#मिथुन राशि : सितंबर 2022
लिंक पाएं
Facebook
X
Pinterest
ईमेल
दूसरे ऐप
मिथुन राशि का भविष्य फल सितंबर 2022 में क्या रहेगा देखे इस वीडियो में.
पंचाग परिचय:- भारतीय ज्योतिषशास्त्र का मूलाधार आकाशीय ग्रहनक्षत्रों का गणित तथा वेध है। गणित के आधार पर सूर्य चन्द्रादि की स्थितियों का सही निर्णय कर गोलीयवेध से दृग्गणितैक्यजन्य समन्वय के द्वारा ग्रहों की वास्तविक दृष्टयुपलब्ध स्थिति ही, उनकी व्यवहारिक उपयोगिता का मूल आधार है। पर्व, धर्मकार्य, यात्रा, विवाह, उत्सव जातक तथा भविष्यफल की जानकारी हेतु ग्रहगणित की शुद्धता की परख पंचांगनिर्माण के द्वारा ही सिद्ध होता है। पंचानां अंगानां समाहारः इति पंचांगम्। पंचांग में पाँच अंग प्रधान होते है तिथि, वार, नक्षत्र, योग एवं करण। इन पाँच अंगों के समाहार को पंचांग कहते है। यथा - तिथिवारं च नक्षत्रं योगः करणमेव च। इति पंचांगमाख्यातं व्रतपर्वनिदर्शकम्।। ये सभी व्यक्तकाल के प्रधान तत्व है। इनके ही आधार पर प्रत्येक धार्मिक, सामाजिक, व्यावहारिक एवं शास्त्रीयकार्य सम्पन्न होते हैं। 'पंचांग' ज्योतिषशास्त्र का मेरूदण्ड माना जाता है। शककाल, वर्षारम्भ, संवत्सर, पूर्णिमान्त- अमान्त मान इत्यादि कुछ बातें पंचांग की ही अंगभूत है। विदित है कि ज्योतिषग...
हिंदू धर्म में विवाह के लिए शुभ समय (मुहूर्त) का निर्धारण ज्योतिषीय गणनाओं, ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति, तिथि, लग्न, और योग पर आधारित होता है। विभिन्न मुहूर्त ग्रंथों, जैसे *मुहूर्त चिंतामणि*, *धर्मसिंधु*, और *पंचांग*, के अनुसार विवाह का समय दिन या रात दोनों में शुभ हो सकता है, बशर्ते शुभ मुहूर्त और लग्न की गणना सही हो। नीचे इस विषय पर विस्तृत जानकारी दी गई है: मुहूर्त शास्त्रों के अनुसार भाद्रादि आदि अन्य क्रूर दोषरहित विवाह - नक्षत्र के समय शुद्ध लग्न में विवाह कभी भी (रात्रि या दिन में) किया जा सकता है। इस विषय में जाति का कोई बंधन नहीं है। लेकिन मुहूर्तशास्त्रकारों ने परामर्श किया है कि विवाह रात्रि के समय किया जाए तो अपेक्षाकृत अधिक शुभ होता है क्योंकि यमघंट, यमदष्ट्रा, क्रकच आदि अनेक अशुभ योगों का प्रभाव दिन में ही होता है, रात्रि में नहीं - "दिवा मृत्युप्रदा: दोषास्त्वेषु न रात्रिषु "-(वशिष्ट:) 1. दिन में विवाह शास्त्रीय दृष्टिकोण: हिंदू शास्त्रों में सामान्यतः शुभ कार्यों को दिन में करने की सलाह दी जाती है, क्योंकि सूर्य की उपस्थिति को सकारात...
हमारे जीवन में कर्म का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। बिना कर्म के कोई भी कार्य की प्राप्ति असंभव सी है। ईश्वर का यह शाश्वत नियम है कि जैसे कर्म करेगें वैसे फल की प्राप्ति होगी। यह वाक्य वेद,पुराण आदि ग्रन्थों वर्णित है। इस जगत में सभी चराचर जीव-जन्तु,प्राणि,मनुष्य कर्म के अधीन है। ज्योतिषशास्त्र में कर्मफल का विवेचन किया गया है। पूर्व जन्मकृत के आधार पर मनुष्य इस जन्म उचित-अनुचित कर्म करता है। जन्माङ्ङ्ग चक्र में दशवें भाव को कर्म भाव माना गया है तथा इस भाव के स्वामी को कर्मेश कह गया है। दशम भाव के स्वामी की विभिान्न भावों के साथ योग, दृष्टि व संबंध से व्यक्ति के कर्म क्षेत्र पर प्रभाव पड़ता है। इस लेख में आप विस्तार से जान पाएँगे कि कर्म व कर्मेश की भूमिका। *कर्मेश अर्थात दशम भाव का स्वामी यदि लग्न में स्थित हो तो ऐसा व्यक्ति कविता करने वाला, बाल्यकाल में रोगी पीछे सुखी और प्रतिदिन धन में वृद्धि करने वाला होता है। * यदि कर्मेश 2,3,7 भावों में हो तो व्यक्ति मनस्वी, गुणी, बुद्धिमान और सत्य बोलने वाला होता है। *यदि कर्मेश चौथे व दशम भाव में हो तो व्यक्ति, ज्ञानी, सुखी, वि...
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें