भारतीय ज्योतिष एक प्राचीन विज्ञान है। इसे वेदों का नेत्र भी कह गया है। इस आधुनिक युग में भी यह अपनी कसौटी पर खरा उतरता है। इस की सटीकता को कोई भी विज्ञान चुनौती नहीं दे सकता है।
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वृश्चिक लग्न और वृश्चिक वर्षफल: एक गहन विश्लेषण जब जन्म लग्न और वर्षफल दोनों ही वृश्चिक राशि के हों, तो जातक की कुंडली में एक अद्वितीय संयोजन बनता है। यह संयोजन जातक के व्यक्तित्व और जीवन में कई महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है। वृश्चिक राशि अपने आप में एक तीव्र, भावुक और रहस्यमय राशि है। जब यह लग्न और वर्षफल दोनों में हो, तो जातक के भीतर इन गुणों की तीव्रता और भी बढ़ जाती है। ऐसे जातकों के सामान्य लक्षण: * गहन भावनाएं: वे अपनी भावनाओं को बहुत गहराई से अनुभव करते हैं। प्रेम, घृणा, ईर्ष्या जैसी भावनाएं उनके जीवन में एक प्रमुख भूमिका निभाती हैं। * रहस्यमय स्वभाव: वे अक्सर अपनी भावनाओं को दूसरों से छिपाते हैं और एक रहस्यमयी आभा रखते हैं। * मजबूत इच्छाशक्ति: वे अपनी मनचाही चीजें पाने के लिए बहुत मेहनत करते हैं और कभी हार नहीं मानते। * अंतर्दृष्टि: उनके पास दूसरों को गहराई से समझने की अद्भुत क्षमता होती है। * चुंबकीय व्यक्तित्व: वे अपने चारों ओर लोगों को आकर्षित करते हैं। वर्षफल में वृश्चिक लग्न होने का प्रभाव: * परिवर्त...
हिंदू धर्म में विवाह के लिए शुभ समय (मुहूर्त) का निर्धारण ज्योतिषीय गणनाओं, ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति, तिथि, लग्न, और योग पर आधारित होता है। विभिन्न मुहूर्त ग्रंथों, जैसे *मुहूर्त चिंतामणि*, *धर्मसिंधु*, और *पंचांग*, के अनुसार विवाह का समय दिन या रात दोनों में शुभ हो सकता है, बशर्ते शुभ मुहूर्त और लग्न की गणना सही हो। नीचे इस विषय पर विस्तृत जानकारी दी गई है: मुहूर्त शास्त्रों के अनुसार भाद्रादि आदि अन्य क्रूर दोषरहित विवाह - नक्षत्र के समय शुद्ध लग्न में विवाह कभी भी (रात्रि या दिन में) किया जा सकता है। इस विषय में जाति का कोई बंधन नहीं है। लेकिन मुहूर्तशास्त्रकारों ने परामर्श किया है कि विवाह रात्रि के समय किया जाए तो अपेक्षाकृत अधिक शुभ होता है क्योंकि यमघंट, यमदष्ट्रा, क्रकच आदि अनेक अशुभ योगों का प्रभाव दिन में ही होता है, रात्रि में नहीं - "दिवा मृत्युप्रदा: दोषास्त्वेषु न रात्रिषु "-(वशिष्ट:) 1. दिन में विवाह शास्त्रीय दृष्टिकोण: हिंदू शास्त्रों में सामान्यतः शुभ कार्यों को दिन में करने की सलाह दी जाती है, क्योंकि सूर्य की उपस्थिति को सकारात...
हमारे जीवन में कर्म का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। बिना कर्म के कोई भी कार्य की प्राप्ति असंभव सी है। ईश्वर का यह शाश्वत नियम है कि जैसे कर्म करेगें वैसे फल की प्राप्ति होगी। यह वाक्य वेद,पुराण आदि ग्रन्थों वर्णित है। इस जगत में सभी चराचर जीव-जन्तु,प्राणि,मनुष्य कर्म के अधीन है। ज्योतिषशास्त्र में कर्मफल का विवेचन किया गया है। पूर्व जन्मकृत के आधार पर मनुष्य इस जन्म उचित-अनुचित कर्म करता है। जन्माङ्ङ्ग चक्र में दशवें भाव को कर्म भाव माना गया है तथा इस भाव के स्वामी को कर्मेश कह गया है। दशम भाव के स्वामी की विभिान्न भावों के साथ योग, दृष्टि व संबंध से व्यक्ति के कर्म क्षेत्र पर प्रभाव पड़ता है। इस लेख में आप विस्तार से जान पाएँगे कि कर्म व कर्मेश की भूमिका। *कर्मेश अर्थात दशम भाव का स्वामी यदि लग्न में स्थित हो तो ऐसा व्यक्ति कविता करने वाला, बाल्यकाल में रोगी पीछे सुखी और प्रतिदिन धन में वृद्धि करने वाला होता है। * यदि कर्मेश 2,3,7 भावों में हो तो व्यक्ति मनस्वी, गुणी, बुद्धिमान और सत्य बोलने वाला होता है। *यदि कर्मेश चौथे व दशम भाव में हो तो व्यक्ति, ज्ञानी, सुखी, वि...
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