संदेश

विवाह: मुहूर्त

चित्र
  हिंदू धर्म में विवाह के लिए शुभ समय (मुहूर्त) का निर्धारण ज्योतिषीय गणनाओं, ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति, तिथि, लग्न, और योग पर आधारित होता है। विभिन्न मुहूर्त ग्रंथों, जैसे *मुहूर्त चिंतामणि*, *धर्मसिंधु*, और *पंचांग*, के अनुसार विवाह का समय दिन या रात दोनों में शुभ हो सकता है, बशर्ते शुभ मुहूर्त और लग्न की गणना सही हो। नीचे इस विषय पर विस्तृत जानकारी दी गई है:        मुहूर्त शास्त्रों के अनुसार भाद्रादि आदि अन्य क्रूर दोषरहित विवाह - नक्षत्र के समय शुद्ध लग्न में विवाह कभी भी (रात्रि या दिन में) किया जा सकता है। इस विषय में जाति का कोई बंधन नहीं है। लेकिन मुहूर्तशास्त्रकारों ने परामर्श किया है कि विवाह रात्रि के समय किया जाए तो अपेक्षाकृत अधिक शुभ होता है क्योंकि यमघंट, यमदष्ट्रा, क्रकच आदि अनेक अशुभ योगों का प्रभाव दिन में ही होता है, रात्रि में नहीं - "दिवा मृत्युप्रदा: दोषास्त्वेषु न रात्रिषु "-(वशिष्ट:)  1. दिन में विवाह शास्त्रीय दृष्टिकोण: हिंदू शास्त्रों में सामान्यतः शुभ कार्यों को दिन में करने की सलाह दी जाती है, क्योंकि सूर्य की उपस्थिति को सकारात...

कर्क में शुक्र का गोचर: इन राशियों के लिए विशेष फलदायी।

चित्र
20 अगस्त 2025 को शुक्र ग्रह मिथुन राशि से निकलकर कर्क राशि में गोचर करेंगे। यह गोचर लगभग एक महीने तक रहेगा, जिसका विभिन्न राशियों पर अलग-अलग प्रभाव देखने को मिलेगा। वैदिक ज्योतिष में शुक्र को प्रेम, सौंदर्य, विलासिता, धन और संबंधों का कारक माना जाता है, जबकि कर्क राशि भावना, परिवार और घर से जुड़ी होती है। इसलिए, इस गोचर के दौरान लोगों के भावनात्मक जीवन, पारिवारिक संबंधों और वित्तीय मामलों पर विशेष प्रभाव पड़ सकता है। शुक्र गोचर का विभिन्न राशियों पर प्रभाव: मेष राशि: यह गोचर आपकी राशि के चौथे भाव में होगा, जो घर और परिवार से संबंधित है। इस दौरान आप घर की सजावट या मरम्मत पर खर्च कर सकते हैं। पारिवारिक रिश्तों में मधुरता आएगी और आप परिवार के साथ अधिक समय बिताएंगे। वृषभ राशि: शुक्र आपकी राशि के तीसरे भाव में गोचर करेंगे, जिससे आपके बातचीत करने के तरीके में सुधार होगा। यह आपके लिए नए वित्तीय अवसर ला सकता है। आप भाई-बहनों या दोस्तों के साथ छोटी यात्राओं की योजना बना सकते हैं, जिससे रिश्ते मजबूत होंगे। मिथुन राशि: शुक्र आपकी राशि के दूसरे भाव में गोचर करेंगे, जो धन और वाणी का भाव...

सिंह राशि में सूर्य का गोचर: इन राशियों के लिए विशेष फलदायक।

चित्र
सूर्य का अपनी ही राशि सिंह में गोचर एक महत्वपूर्ण ज्योतिषीय घटना है। इसे ज्योतिष में बहुत शुभ माना जाता है, क्योंकि सूर्य अपनी स्वराशि में होने के कारण अधिक बलवान और प्रभावशाली हो जाते हैं। इस गोचर का प्रभाव सभी राशियों पर पड़ता है, लेकिन कुछ राशियों के लिए यह विशेष रूप से फलदायी होता है। आइए जानते हैं किन राशियों के लिए यह गोचर विशेष रूप से लाभकारी सिद्ध होगा:  * मिथुन राशि: मिथुन राशि के जातकों के लिए सूर्य का यह गोचर बेहद शुभ माना जाता है। इस दौरान आपको व्यापार में उन्नति मिल सकती है, नौकरी से जुड़ी परेशानियां दूर होंगी और आय के नए स्रोत बन सकते हैं। छात्रों को भी परीक्षा में सफलता मिलने की संभावना है।  * सिंह राशि: सूर्य आपकी ही राशि में गोचर कर रहे हैं, इसलिए यह समय आपके लिए बहुत अच्छा रहेगा। आपकी आर्थिक स्थिति मजबूत होगी और नौकरी में बदलाव के अवसर मिल सकते हैं। इस दौरान आपके रुके हुए काम भी पूरे होने की संभावना है।  * धनु राशि: धनु राशि के जातकों के लिए सूर्य का सिंह राशि में गोचर बेहद शुभ साबित होगा। आपको विदेश यात्रा का अवसर मिल सकता है, जो आपके करियर ...

ग्रह शांति में नव ग्रह समीदा का उपयोग

चित्र
  नव ग्रह समीदा हवन में उपयोग की जाने वाली नौ विभिन्न प्रकार की लकड़ियों या पौधों की टहनियों का एक समूह है, जो नौ ग्रहों में से प्रत्येक का प्रतिनिधित्व करती हैं।" नमस्ते! "नव ग्रह समीदा" हवन (अग्नि अनुष्ठान) में उपयोग की जाने वाली नौ अलग-अलग प्रकार की लकड़ियों या पौधों की टहनियों का एक समूह है, जो नौ ग्रहों में से प्रत्येक का प्रतिनिधित्व करती हैं। इन समिधाओं का उपयोग नवग्रहों को प्रसन्न करने और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए किया जाता है। प्रत्येक ग्रह के लिए विशिष्ट समीदा निर्धारित है:  * सूर्य: अर्क (आक)  * चंद्र: पलाश (ढाक)  * मंगल: खदिर (कत्था)  * बुध: अपामार्ग (चिरचिटा)  * बृहस्पति: पीपल  * शुक्र: उदुम्बर (गूलर)  * शनि: शमी (खेजड़ी)  * राहु: दूर्वा (दूब घास)  * केतु: कुशा (दर्भ घास) हवन करते समय, प्रत्येक ग्रह के मंत्र का जाप करते हुए उसकी संबंधित समीदा को अग्नि में अर्पित किया जाता है। नव ग्रह समीदा का महत्व:  * माना जाता है कि प्रत्येक समीदा में उस विशेष ग्रह की ऊर्जा होती है।  * हवन में इन समिधाओं का उपयोग करके, व्...

बिखोति संक्रांति

बिखोति संक्रांति मुख्य रूप से उत्तराखंड में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्योहार है। इसे विषुवत संक्रांति या मेष संक्रांति के रूप में भी जाना जाता है, और यह बैसाख महीने के पहले दिन पड़ता है, जो आमतौर पर अप्रैल के मध्य में होता है। 14 अप्रैल 2025 को भी बिखोति संक्रांति मनाई जाएगी। बिखोति संक्रांति का अर्थ और महत्व:  * यह त्योहार हिंदू सौर नववर्ष की शुरुआत का प्रतीक है।  * यह वसंत ऋतु के आगमन और नई फसल के मौसम की शुरुआत का भी प्रतीक है।  * 'बिखोति' शब्द वन्यजीवों से जुड़ा हुआ माना जाता है, और ऐसा माना जाता है कि इस दिन बारिश होने से पौधे बीमारियों से मुक्त रहते हैं और अगली फसल अच्छी होती है।  * यह दिन गंगा नदी और अन्य पवित्र नदियों में स्नान करने और दान-पुण्य करने के लिए शुभ माना जाता है।  * यह त्योहार उत्तराखंड की लोक संस्कृति और परंपराओं को दर्शाता है। बिखोति संक्रांति की परंपराएं और अनुष्ठान:  * पवित्र स्नान: लोग नदियों और पवित्र कुंडों में स्नान करते हैं।  * पूजा और दान: मंदिरों में पूजा-अर्चना की जाती है और गरीबों को दान दिया जाता है।  * ओढ़ा ...

हिंदू कैलेंडर का वैज्ञानिक आधार और वर्तमान कैलेंडर

चित्र
 #हिन्दू_कैलेंडर की #वैज्ञानिकता का आधार  आज वर्तमान में  संपूर्ण विश्व में ग्रेगोरियन कैलेंडर का उपयोग किया जाता है जो सूर्य के उदय अस्त पर आधारित है।  *ग्रेगोरियन कैलेंडर को 1582 में पोप ग्रेगरी XIII द्वारा शुरू किया गया था।    * यह जूलियन कैलेंडर का एक संशोधन था, जो पहले उपयोग में था, लेकिन बहुत सटीक नहीं था। *हिंदू कैलेंडर की वैज्ञानिकता खगोल विज्ञान और गणित पर आधारित है। यहां कुछ प्रमुख पहलू दिए गए हैं:  * चंद्र और सौर गणना:    * हिंदू कैलेंडर चंद्रमा और सूर्य दोनों की गति पर आधारित है। यह इसे अन्य कैलेंडरों से अधिक सटीक बनाता है, जो केवल चंद्रमा या सूर्य पर आधारित होते हैं।    * चंद्रमा की गति के आधार पर महीनों की गणना होती है, जबकि सूर्य के आधार पर साल की गणना होती है।  * नक्षत्रों का उपयोग:    * हिंदू कैलेंडर में नक्षत्रों का भी उपयोग किया जाता है, जो तारों के समूह हैं।    * नक्षत्रों की स्थिति का उपयोग शुभ और अशुभ समय निर्धारित करने के लिए किया जाता है।  * गणितीय सटीकता:    * हिंदू कै...

Karmesh bhav fal: कर्म भाव फल

चित्र
 हमारे जीवन में कर्म का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। बिना कर्म के कोई भी कार्य की प्राप्ति असंभव सी है। ईश्वर का यह शाश्वत नियम है कि जैसे कर्म करेगें वैसे फल की प्राप्ति होगी। यह वाक्य वेद,पुराण आदि ग्रन्थों वर्णित है। इस जगत में सभी चराचर जीव-जन्तु,प्राणि,मनुष्य कर्म के अधीन है। ज्योतिषशास्त्र में कर्मफल का विवेचन किया गया है। पूर्व जन्मकृत के आधार पर मनुष्य इस जन्म उचित-अनुचित कर्म करता है। जन्माङ्ङ्ग चक्र में दशवें भाव को कर्म भाव माना गया है तथा इस भाव के स्वामी को कर्मेश कह गया है। दशम भाव के स्वामी की विभिान्न भावों के साथ योग, दृष्टि व संबंध से व्यक्ति के कर्म क्षेत्र पर प्रभाव पड़ता है। इस लेख में आप विस्तार से जान पाएँगे कि कर्म व कर्मेश की भूमिका।  *कर्मेश अर्थात दशम भाव का स्वामी यदि लग्न में स्थित हो तो ऐसा व्यक्ति कविता करने वाला, बाल्यकाल में रोगी पीछे सुखी और प्रतिदिन धन में वृद्धि करने वाला होता है। * यदि कर्मेश 2,3,7 भावों में हो तो व्यक्ति मनस्वी, गुणी, बुद्धिमान और सत्य बोलने वाला होता है।  *यदि कर्मेश चौथे व दशम भाव में हो तो व्यक्ति, ज्ञानी, सुखी, वि...