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वृश्चिक लग्न और वृश्चिक वर्षफल: एक गहन विश्लेषण

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  वृश्चिक लग्न और वृश्चिक वर्षफल: एक गहन विश्लेषण           जब जन्म लग्न और वर्षफल दोनों ही वृश्चिक राशि के हों, तो जातक की कुंडली में एक अद्वितीय संयोजन बनता है। यह संयोजन जातक के व्यक्तित्व और जीवन में कई महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है। वृश्चिक राशि अपने आप में एक तीव्र, भावुक और रहस्यमय राशि है। जब यह लग्न और वर्षफल दोनों में हो, तो जातक के भीतर इन गुणों की तीव्रता और भी बढ़ जाती है। ऐसे जातकों के सामान्य लक्षण:  * गहन भावनाएं: वे अपनी भावनाओं को बहुत गहराई से अनुभव करते हैं। प्रेम, घृणा, ईर्ष्या जैसी भावनाएं उनके जीवन में एक प्रमुख भूमिका निभाती हैं।  * रहस्यमय स्वभाव: वे अक्सर अपनी भावनाओं को दूसरों से छिपाते हैं और एक रहस्यमयी आभा रखते हैं।  * मजबूत इच्छाशक्ति: वे अपनी मनचाही चीजें पाने के लिए बहुत मेहनत करते हैं और कभी हार नहीं मानते।  * अंतर्दृष्टि: उनके पास दूसरों को गहराई से समझने की अद्भुत क्षमता होती है।  * चुंबकीय व्यक्तित्व: वे अपने चारों ओर लोगों को आकर्षित करते हैं। वर्षफल में वृश्चिक लग्न होने का प्रभाव:  * परिवर्त...

जीवन के चार पुरुषार्थ

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  जीवन के चार उद्देश्य वैदिक विज्ञान मानव जीवन के चार उद्देश्यों या लक्ष्यों को पहचानता है: काम, अर्थ, धर्म और मोक्ष।  1.#काम का अर्थ है इच्छा और यह जीवन में भावनात्मक और संवेदी पूर्ति की हमारी आवश्यकता को दर्शाता है। इस प्रकार, हम इसे आनंद कह सकते हैं। जीवन में हम जो कुछ भी करते हैं, वह खुशी का स्रोत होना चाहिए और किसी भी प्राणी को पीड़ा नहीं पहुँचाना चाहिए। 2.#अर्थ- का अर्थ है लक्ष्यों की प्राप्ति, लेकिन यह विशेष रूप से मूल्यवान वस्तुओं के अधिग्रहण से संबंधित है और इसलिए इसे धन के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। हममें से प्रत्येक के पास जीवन में अपनी क्षमता को पूरा करने के लिए धन की आवश्यक वस्तुएँ होनी चाहिए। 3.#धर्म- का अर्थ है सिद्धांत या कानून और यह सम्मान या मान्यता की हमारी आवश्यकता को दर्शाता है। हम इसे व्यवसाय कह सकते हैं, क्योंकि हमारी संस्कृति इस आवश्यकता की व्याख्या इसी तरह करती है। हममें से प्रत्येक को इस बात के लिए स्वीकार किए जाने की आवश्यकता है कि हम क्या कर सकते हैं ताकि हम अपने वास्तविक स्वरूप से समझौता किए बिना समाज में योगदान दे सकें। 4.#मोक्ष का अर्थ है ...

हिन्दू धर्म में नारायणबली का का करण एंव महत्व

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              नारायणबलि      सनातन (हिन्दू) धर्म विश्व का सबसे प्राचीन धर्म है. यह धर्म प्रकृतिमूलक के साथ - साथ ईश्वरवादी भी है.  इस धर्म में ईश्वर, आत्मा तथा जीव में समन्वय स्थापित किया गया है. इसी लिए शास्त्रों में कहा गया है कि- "देवाधीनं जगत सर्वम, मंत्राधिनम च देवता"।।    हमारे धर्म शास्त्रों में मृत्यु का प्रकार,  मृत्यु का कारण तथा उसकी प्रकृति पर विस्तृत रूप से चर्चा की गई है, और मृत्यु की गति के अनुसार व्यक्ति को इहलोक एवं परलोक की प्राप्ति होती है। जिन व्यक्तियों की आकस्मिक मृत्यु होती है तथा मृत्यु का कोई कारण पता नहीं चलता है और उनकी मृत आत्माएं इस लोक में मुक्ति के लिए भटकती रहती है. मृतात्मा की शांति के लिए नारायणबलि का प्रावधान बताया गया है, जो इस प्रकार है -    ग्यारहवें दिन से समन्त्रक श्राद्ध आदि करने की विधि है। प्राणी के दुर्मरण की निवृत्ति के लिये नारायणबलि करने की आवश्यकता होती है। दुर्मरण की आशंका न रहने पर नारायणबलि करना अनिवार्य नहीं है। शास्त्रों में दुर्भरण के निम्नलिखित कारण परिभ...

Grahchar fal ग्रहचार : भौमाचार फल

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 ग्रहचार : भौमाचार फल (ज्योतिषाचार्य पं. हेमवती नंदन कुकरेती) ग्रहचार : सामान्य परिचय ज्योतिष शास्त्र में ग्रहचार का अर्थ है ग्रहों का चलन। 'चर' शब्द चलन अर्थ में प्रयुक्त होता है। सूर्यादि ग्रहों का चार एवं चारफल का वर्णन समस्त संहिताचार्यों ने अपने-अपने ग्रन्थों में प्रतिपादित किया है। आइए मंगल के चार से आरम्भ करते है - अपने उदय नक्षत्र से सातवें, आठवें तथा नवें नक्षत्र में यदि मंगल वक्री हो तो उसे उष्णसंज्ञक कहते हैं। इसमें अग्नि भय होता है तथा प्रजा पीडित होती है। यदि मंगल दसवें, ग्यारहवें या बारहवें नक्षत्र में वक्री हो तो अल्प सुख एवं वर्षा होती है। कुजे त्रयोदशे ऋक्षे वक्रिते वा चतुर्दशे। व्यालाख्यवक्रं तत्तस्मिन् सस्यवृद्धिरहेर्भयम्।। यदि उदय नक्षत्र से तेरहवें या चौदहवें नक्षत्र में मंगल वक्री हो तो इसे व्याल नामक वक्र कहते हैं। इसमें धान्य की वृद्धि होती है तथा सर्पभय होता है। पंचदशे षोडशक्षै तद्वक्रं रूधिराननं। सुभिक्षकृत्भयं रोगान्करोति यदि भूमिजः ।। यदि १५ वें या १६ वें नक्षत्र पर मंगल ग्रह वक्री हो तो इसे रूधिरानन वक्र कहते हैं। इसमें सुभिक्ष होता है तथा भय एवं रो...

Kahala yog : काहल योग

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काहल योग  लग्नेश बलवान हो, सुखेश और गुरु परस्पर  केंद्र में हो, सुखेश और कर्मेश एक साथ होकर अपने उच्च,  स्वराशि में हो तो दोनों तरह के काहल नामक योग बनते हैं। इस योग में जन्म लेने वाला जातक तेजस्वी, साहसी, धूर्त, चतुर, बाली और कुछ गांव का अधिपति होता है। #https://www.youtube.com/@Pt.HNKukretiAstrology

काल की अवधारणा एवं भेद

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काल: -  "कालः सृजति भूतानि कालः संहरते प्रजाः" इत्यादि शास्त्र वचनों के आधार काल अनादि एवं अनंत रूप में होता है। मूल रूप से किसी भी एक नियम या परिभाषा में खंडन कर देना एक कठिन प्रयास है, तथापि शास्त्रकारों ने अपने - अपने सिद्धांतों के उपदेशों को सूक्ष्म रूप में प्रतिपादित किया है। परंतु कालविधान शास्त्र के कारण ज्योतिषशास्त्र में काल होने की अवधारणा सुव्यवस्थित एवं सूक्ष्मतम रूप में प्रतिपादित है। ज्योतिष शाशास्त्रानुसार काल को  दो भागों में विभक्त कर इसकी परिभाषा निश्चित रूप से बताई गई है। जिसमें काल के प्रथम भेद को भगवान का रूप स्वीकार कर सृष्टिकारक  एवं  'अन्तकृत' अर्थात लोक का संहारक तथा दूसरे को कलात्मक अर्थात गणना में प्रयुक्त काल कहा गया है।  1. अन्तकृत (उत्पादक एंव संहारक) 2. कलनात्मक - (क) सूक्ष्म (अमूर्त)                        (ख) स्थूल (मूर्त) सूक्ष्म काल -  सूक्ष्म कल की इकाइयों को यंत्रादि के द्वारा जानकर गणित में प्रयोग किया जाता है अतः सरलता पूर्वक अभ्यास नहीं होने के कारण सामान्य व...

Rashi,bhav evam grahno se rog vichar

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 https://youtu.be/oODQoliCd18?si=47uZOqtz3S966o4K