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शुभ तथा अशुभ तिथियां एवं उनका स्वरूप क्या है?

                पंचांग में तिथि ज्योतिष का प्रथम एवं महत्वपूर्ण अंग है। सर्व प्रथम तिथि की रचना कैसे होती है ? और तिथि किसी कहते है ? जब चंद्रमा अपने विमण्डल में स्वगती से चलता हुआ जिस समय सूर्य के निकट पहुंचता है तब वह आमावश्य तिथि होती है। अर्थात आमावश्य के दिन सूर्य-चंद्रमा एक राशि पर आ जाते है। उसके बाद सूर्य एवं चंद्रमा दोनों अपने - अपने मार्ग पर घूमते हुए जो दूरी (12 अंश की ) उत्पन्न करते हैं, उसी को तिथि कहते हैं। 12-12 अंशात्मक अंतर की एक-एक तिथि होती है। 360 अंश पूरा होने पर सूर्य-चंद्रमा एक राशि पर आजाते हैं, तब एक चांद्रमास होता है। सूर्य चंद्र का 12 अंश अंतर पूरा करता है, उसको तिथि का भोगकाल कहते है। तिथि का अंतर जिस समय से प्रारंभ होता है, वह पंचांग में अंकित रहता है। तिथियों की संख्या 15 होती है जिनका नाम इस प्रकार से है- प्रतिपदा,द्वितीया,तृतीया,चतुर्थी,पंचमी, षष्टि, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा/ आमावश्य 

#वेदों की वाणि

जो परब्रह्म परमात्मा अपने निराकार स्वरूप में रूप रंग आदि से रहित होकर भी सृष्टि के आदि में किसी अज्ञात प्रयोजन से अपनी स्वरूप भूत नाना प्रकार की शक्तियों के संबंध से अनेक रूप रंग आदि धारण करते हैं, तथा अंत में यह संपूर्ण जगत जिन में विलीन हो जाता है अर्थात जो बिना किसी अपने प्रयोजन के जीवों का कल्याण करने के लिए ही उनके क्रमानुसार इस नाना रंग रूप वाले जगत की रचना,पालन और संहार करते हैं वह परम देव परमेश्वर वास्तव में एक अद्वितीय हैं उनके अतिरिक्त कुछ नहीं है वह हमें शुभ बुद्धि से युक्त करें।

#Dhamu_rashi

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#मिथुन राशि : सितंबर 2022

मिथुन राशि का भविष्य फल सितंबर 2022 में क्या रहेगा देखे इस वीडियो में.   

@पितृ पक्ष में श्राद्ध का महत्व

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  सनातन धर्म में श्राद्ध का महत्व      जाने अनजाने कुछ ऐसे कर्म हो जाते हैं जिन्हें सामाजिक, धार्मिक तथा मानवता के आधार पर उचित नहीं ठहराया जा सकता है l सनातन धर्म के अनुसार मनुष्य द्वारा किए जाने वाले कर्मों को दो श्रेणी में विभक्त किया गया है पहलाह वे कर्म जो सब के हित के अनुसार हो, किसी को किसी प्रकार का कष्ट न पहुंचे ऐसे कर्म को पुण्य कर्म कहा जाता है l पुण्य कर्म का फल स्वर्ग माना गया है। स्वर्ग जहां सभी दिव्य आत्माओं एवं देवताओं का वास होता है तथा जहां जन्म - मृत्यु के चक्र से मुक्त रहते हैं, जहां शोक,व्याकुलता,संतान जैसी व्याधि न हो। द्वितीय पाप कर्म वे कर्म होते हैं जिनके द्वारा मनुष्य जीवन अथवा जीवजंतु तथा कोई प्राणी कष्ट उठाता है।  शास्त्रों में पाप कर्म का फल नरक बताया गया है। नरक का वर्णन गरुड़ पुराण तथा अन्य धर्म शास्त्रों में इस प्रकार से आया है कि मरने के बाद जब कोई आत्मा जीव का परित्याग कर देती है तो कर्म के आधार पर उस मृतात्मा को कर्मानुसार स्वर्ग या नरक की प्राप्ति होती है। पाप कर्म आत्मा को नरक में यमराज के दूत रस्सी में बाँध कर कोड़े (चा...

@Pandit. H.N.Kukreti Astrology

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@अंक ज्योतिष: बहुमुखी प्रतिभा के धनी होते हैं इस मूलांक के लोग, घूमने-फिरने के होते हैं शौकीन ।

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अंक ज्योतिष: बहुमुखी प्रतिभा के धनी होते हैं इस मूलांक के लोग, घूमने-फिरने के होते हैं शौकीन Numerology: अंक ज्योतिषशास्त्रियों के मुताबिक गजब कम्युनिकेशन स्किल्स होने के कारण ये जल्द ही लोगों से घुल-मिल इन लोगों का बौद्धिक स्तर काफी ज्यादा होता है जिस कारण लोगों की पंक्ति में इनकी अलग पहचान होती है Ank Jyotish:  ज्योतिष शास्त्रियों के अनुसार अंकों के जरिये भी लोगों के भविष्य को जानने की कोशिश की जाती है। कहा जाता है कि लोगों के जन्म तिथि का व्यवहारिक उपयोग करके लोगों की विचारधारा, जीवन के प्रति रवैया आदि के बारे में जानकारी मिलती है। बता दें कि ज्योतिष शास्त्र में मुख्य रूप से राशि, ग्रह और नक्षत्र पर आधारित होते हैं। अंक ज्योतिष में भी नव ग्रह, बारह राशियां और 27 नक्षत्रों का अध्ययन किया जाता है। जानकारों के मुताबिक  मूलांक  5 परिवर्तन और साहस का अंक है। ये व्यक्ति जन्म से ही कलाकार होते हैं। इन्हें घूमने फिरने का काफी शौक होता है। बता दें कि जिनका जन्म किसी भी महीने की 5, 14, 23 तारीख को होता है, उनका मूलांक 5 होता है। इस मूलांक का स्वामी बुध होता है जिन्हें बुद्धि और ...