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ग्रहों के शत्रु मित्रादि Planets Friend and enemy

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प्रिय पाठकों को नमस्कार! मैं आपको ग्रहों के मित्र, शत्रु आदि का ज्ञान इस लेख के माध्यम से कराऊंगा। जब हम ग्रह के प्रभाव को बारीकी से समझते हैं तो मालूम होता है कि दृष्टि के माध्यम से या अपने संचरण के माध्यम से हो, वस्तुतः ग्रह हमें तीन प्रकार से प्रभावित करते हैं।  1 मित्रवत,2 शत्रुवत,तथा 3 तटस्थ।  तात्पर्य यह है कि ग्रह या तो मित्रवत हमारा सहयोग करेगा या शत्रुवत पीड़ा देगा। तटस्थ ग्रह जिन ग्रह के प्रभाव में होगा उन ग्रहों के गुणानुसार अपना प्रभाव प्रगट करेगा। अनुकूल ग्रह, प्रतिकूल ग्रह, शुभ फल देने वाला, अशुभ फल देने वाला आदि सभी बातें इन्हीं उपयुक्त कर्म से निर्धारित होती है अतः इस भाग में हम कुंडली में मित्र आदि सम्यक ज्ञान प्राप्त करेंगे। ग्रहों के शत्रु मित्रादि हमारे मनीषियों ने ग्रहों के नैसर्गिक  मित्र,  शत्रु व सम ग्रहों का निर्णय किया है। नैसर्गिक का भावार्थ यह है कि प्राकृतिक रूप से ग्रह किसका मित्र है,  किस का शत्रु है। स्वे: समो ज्ञःसितसूर्यपुत्रावरी परे ते सुहृदो भवेयुः।  चन्द्रस्य नारी रविचन्द्र पुत्रौ मित्रे समः शेषनभश्चराः स्युः।।  सभी...

ब्राह्मण क्यों देवता है ?

  देवाधीनं जगत सर्वं मंत्राधीना च देवता ते मंत्रा ब्राह्मणाधीना तस्मात् ब्राह्मण देवता । यह संसार ईश्वर के अधीन है और ईश्वर मंत्रों के अधीन है, तथा मंत्र ब्राह्मणों के अधीन है, इसीलिए शास्त्रों में, वेदों में कहा गया है कि ब्राह्मण ही देवता है, जब तक ब्राह्मण मंत्र का उच्चारण नहीं करेगा तो तब तक ईश्वर प्रश्न नहीं होगा क्योंकि मंत्रों में ईश्वर प्राप्त करने की असाधारण शक्ति व्याप्त है, इसीलिए ब्राह्मणों को देवता माना गया है।

रज्जु योग

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आज का राशिफल: कन्‍या राशि

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#मृत्यु दायक योग

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प्रात:काल के मन्त्र

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तिथियों एवं वारों के संयोग से शुभ एवं अशुभ का विचार -

  तिथियों एवं वारों के संयोग से शुभ एवं अशुभ का विचार -      (पं. हेमवती नन्दन कुकरेती, ज्योतिषाचार्य ) १   मृत योग-    यदि रविवार को नन्दा यानि प्रतिपदा,षष्ठी एवं एकादशी तिथियां हो, सोमवार को भद्रा यानी द्वितीय,सप्तमी तथा द्वादशी तिथियां हो, मंगलवार को नन्दा यानी प्रतिपदा, षष्ठी तथा एकादशी तिथियां हो, बुधवार को जया यानी तृतीय, अष्टमी, त्रयोदशी तिथियां हो, बृहस्पतिवार को रिक्ता यानी चतुर्थी, नवमी, तथा चतुर्दशी तिथियां हो, शुक्रवार को भद्रा यानी द्वितीय, सप्तमी तथा द्वादशी तिथियां हो, और शनिवार को पूर्ण यानी पंचमी, दशमी तथा अमावस्या या पूर्णिमा तिथियां आती हो तो मृत योग बन जाता है।       २ दग्ध योग-  यदि रविवार को भरणी नक्षत्र हो, सोमवार को चित्रा नक्षत्र हो, मंगलवार को उत्तराषाढ़ हो, बुधवार को धनिष्ठा नक्षत्र हो, गुरुवार को उत्तरफाल्गुनी हो, शुक्रवार को ज्येष्ठा हो और शनिवार को रेवती नक्षत्र हो तो दग्ध योग होता है ।  ३ क्रकच योग-    षष्ठी आदि क्रम से तिथियों और शनि आदि उलटे वारों के योग से क्रकच नामक अधम योग ...